Bøger udgivet af Repro India Limited
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143,95 kr. A pandemic is a biological war with an invisible enemy. COVID-19 is World War 3, where a biological holocaust is occurring on our social media feeds in real time. After every world war there is a period of post-war reconstruction. The New Digital World Order presents a post-pandemic reconstruction guide on how the world can build back better; politically, socially, economically, culturally and environmentally. COVID-19 has been the best Chief Digital Officer the world has ever seen, it has accelerated the digitization of all aspects of humanity. Providing ideas on post-pandemic reconstruction, The New Digital World order provides future foresight and disruptive ideas on how governments and businesses can build back better in the new normal.
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198,95 kr. VALWhen I was nine, I went to my first funeral. Along with accepting my father's death, I had to accept new and awful truths I wasn't prepared for.When I was nineteen, I went to my mother's funeral. We weren't close, but with her gone, I became more alone than ever before.Sure, I have a half brother who runs The Alliance. And yeah, he's given me his protection - in the form of a bodyguard and chauffeur. But I don't have anyone that really knows me. No one to really love me.Until I meet him. The man in the airport.And when one chance meeting turns into something hotter, something more serious, I let myself believe that maybe he's the one. Maybe this man is the one who will finally save me from my loneliness. The one to give me the family I've always craved.DOMThe Mafia is in my blood. It's what I do.So when that blood is spilled and one funeral turns into three, drastic measures need to be taken.And when this battle turns into a war, I'm going to need more men. More power.I'm going to need The Alliance.And I'll become a member. By any means necessary.
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288,95 kr. Howard Rosethorn is sent on a holy quest - he thinks. Or the Creys' dragon will destroy the world and the end of days will come... or something. He's not sure, since the holy flying cat flew into his face and kind of interrupted the rundown on the quest...King Samuel Horne of Stoneguard is missing and Howie has been dispatched to find him - in the oft-avoided province of Adem, no less. He's visiting the Creys: a deranged royal family consisting of an unattainable love interest, a dead-ish prince and a king that keeps severed heads as party decorations... sometimes with bite marks in.But that's the least of his problems. A prophecy dictates that if King Sam dies, the end of the world is soon to follow - and with politics and casual evil at every turn, Howie's on thin ice. Will the Creys help him?Or will King Sam die before it's too late?
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143,95 kr. ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿ '¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿' ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ 1968 ¿¿¿¿, ¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ '¿¿¿¿¿¿¿' ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿ '¿¿¿¿' ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿
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153,95 kr. Two Iranian-American couples meet for an ill-fated peacemaking dinner after the son of one calls the son of the other a racial slur at school.
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258,95 kr. While I Was Watching the Sun: After the SunsetA sunset can quite literally be seen as an endto the day. Symbolically, it can represent thecompletion of a journey. Whether it is a journey filled with joy or sadness, love or disappointment, one can rest assured that each day will come to an end, and the newness of tomorrow will bring endlessopportunities. I am often reassured by the swirls of pink, orange, indigo, and violet in the sky at the end of a beautiful day. This After the Sunset edition symbolizes restoration. It constitutes my decision to try again, to love fearlessly, and to continue the journey.
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158,95 - 218,95 kr. - Bog
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413,95 kr. यह पुस्तक उष्णकटिबंधीय शुष्क वनों के पुनर्स्थापन के लिए अनुभव और पारंपरिक ज्ञान का एक ऐसा लेखा-जोखा है, जिसे समकालीन वैज्ञानिक शोध के प्रकाश में जाँचा- परखा और विश्लेषित किया गया है। इस जाँच- परख से प्रकट हुई समग्र दृष्टि उस भाषा में उन लोगों के लिए प्रस्तुत की गई है, जो प्रमाण- आधारित वन पुनर्स्थापन करना चाहते हैं। पुस्तक में सैद्धांतिक पक्ष को यथा-आवश्यकता संदर्भित किया गया है, तथापि मूल उद्देश्य लोगों के सम्मुख उपयोगी ज्ञान और समझ प्रस्तुत करना है। संयुक्त राष्ट्र के पारिस्थितिक तंत्र पुर्नस्थापन दशक 2021-2030 के दौरान प्रमाण-आधारित, क्रियान्वयन-योग्य रणनीति की आवश्यकता स्वाभाविक है। भारत उन देशों में से है, जहाँ इस कालावधि में व्यापक स्तर पर वन पुनर्स्थापन प्रस्तावित हैं। परंतु ऐसी चिंताएँ व्यक्त की गई हैं कि एक तो भारत में वन पुनर्स्थापन के बजाय वृक्षारोपण पर जोर है और दूसरे वृक्षागोपण भी तकनीकी रूप से ठीक नहीं हो रहे हैं। पानी, मिट्टी व वनों को बचाए बिना दुनिया की कोई सभ्यता या समाज फल-फूल नहीं सकता । यदि सही दिशा में प्रयतत किए जाए तो वर्ष 2021 से 2030 के मध्य पृथ्वी पर वनों और मानव का इतिहास बदला जा सकता है। आशा की जाती है कि इस पुस्तक में प्रस्तुत जानकारी धरातल पर उष्णकटिबंधीय शुष्क वनों के पुनर्स्थापन हेतु समुचित दिशा प्रदान करेगी ।
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383,95 kr. The sole aim of writing this book has been to rekindle the values of Kashmir that has been considered as the cradle of civilisation. The book aims at making the world know about the land of Kashmir that has been a prime contributor in extensively escalating Bharatiya culture across the globe. The book articulates about the reality of ancient Kashmir where people belonging to different sects lived peacefully and in co-existence. For centuries, education, culture and knowledge has been a matter of reverence and honour that has consequently produced great scientists, scholars and saints and has made Kashmir a melting pot of knowledge and wisdom. The book brings to light the invasions and forcible conversions that has led to genocide and seven recorded exoduses of Kashmiri Hindus. It also recommends some steps that government needs to take towards the dignified return of Kashmiri Hindus back into their homeland. Proud children of this land who carry with them the cultural heritage of Kashmir, its spiritual strength, urge for knowledge and search for truth, will be the harbingers of human hope. They will be the torch bearers of respect for elders and teachers, universal love and unlimited hospitality for all beings. This book is a collection of inspiring cultural folklore of Kashmir.
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383,95 kr. मैं एक घर छोड़ा, लाखों घर मेरे हो गए, मैं लाखों परिवार का हिस्सा बन गया, शायद एक गृहस्थ इतने घर नहीं देख सकता। संन्यासी जीवन में सभी कुछ त्यागना पड़ता है। आज मैं धन्य हो गया कि मेरे बेटे ने धर्म का, सेवा का, जग के कल्याण कार्य हेतु जो कार्य किया, वह विलक्षण व्यक्ति ही करते हैं। जब गृह त्याग कर गए थे तो घर में सभी दुःखी व परेशान थे, परंतु आज सभी अपने को धन्य मान रहे हैं। तभी एक स्वर स्वामीजी के कानों में पड़ा, जब से आपने गृह त्यागा है, तब से माँ ने मिष्टान्न को हाथ भी नहीं लगाया है। जब भी खाने को कहो तो वह कहती है कि मिष्टान्न तो वह अपने बेटे (स्वामीजी) के हाथ से ही खाएँगी। --इसी उपन्यास से आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरिजी महाराज एक चुंबकीय व्यक्तित्व के स्वामी हैं। ऊँचा कद, गौर वर्ण, उन्]नत भाल, आभायुक्]त देव सदृश्य मुखमंडल, देवत्वयुक्त प्रभावशाली महान्] व्यक्तित्व, उस पर गेरुए वस्त्र, जैसे उनके गौर वर्ण में घुलकर स्वयं गेरुआमय हो गए हों! वह मात्र संन्यासी ही नहीं, जैसे संन्यास उनके लिए हो उनके चेहरे पर सदा छाई रहनेवाली पवित्र व सौम्य मुसकान लोगों को स्वयं ही नत- मस्तक कर देती है; मन में श्रद्धा सी उमड़ पड़ती है। बच्चों में बच्चों की निश्च्छल मुसकान, महिलाओं में कभी वह भाई बनकर, माताओं के बेटा बनकर, युवतियों के पितृ सदृश्य बन वह सभी के सम्मान का केंद्र बन जाते हैं ऐसे तपोनिष्ठ, समाज के पथ-प्रदर्शक और मानवता के अग्रदूत पूज्य स्वामीजी के प्रेरणामय व त्यागपूर्ण जीवन पर अत्यंत भावप्रवण, मार्मिक, पठनीय औपन्यासिक कृति है "तप और तपस्या
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368,95 kr. जीवन-पथ पर चलते हुए कितने लोग, कितनी स्थितियाँ, विविध प्रसंग, विविध रसों का रसास्वादन, भिन्न-भिन्न शहरों और निर्जन स्थलों पर अनेकानेक भावों के संवाद और स्वरों के गान सुनने को मिलते हैं। वहीं विरोधाभाषी स्पर्शों की अनुभूति भी होती है। कुछ स्पर्श ऐसे, जो कोमल और कठोर, कुछ भी हों, भुलाए नहीं भूलते। कुछ प्रसंगों को हम दूसरों को बार-बार सुनाते हैं। उसमें हर बार कुछ-न-कुछ नवीनता जुड़ती जाती है। पर मूल प्रसंग तो वही रहता है। प्रसिद्ध साहित्यकार स्व. मृदुला सिन्हाजी के दायित्व का तकाजा घुमक्कड़ी था; वे पिछले चालीस वर्षों में देश-विदेश घूमती ही रहीं। अतीव संवेदनशील होने के कारण अपनी अनुभूतियों को सँजो लेती थीं। उनकी लेखनी और कोरे कागज उनके जीवन-संगी थे ही। ट्रेन में हों या प्लेन में, प्रसंग उनके मानस से उतरकर कोरे कागज को भरते रहे। इन लेखों में व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, प्रादेशिक और समाज में स्थित राष्ट्रीय एकता की पहचान संबंधित आलेख भी आ गए। सुदूर अंडमान निकोबार में कोई घटना घटी, उसकी रिपोर्ट 'दुनिया मेरे आगे' में छपने के बाद कश्मीर के लोगों को भी अपने आसपास की घटना लगी। तभी तो सब ओर के पाठक उल्लसित होते रहे और इन लेखों की लोकप्रियता लेखिका के लिए समाज के गुण-दोषों, रिश्ते-नातों के विभिन्न तासीर के आकलन का एक माध्यम बन गई। इन लेखों में मनुष्य जीवन ही नहीं, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे सभी की कहानियाँ हैं। अपने आकार-प्रकार में भले ही ये आलेख बहुत बड़े नहीं हैं, फिर भी इनकी गहराई और गंभीरता से इनकार नहीं किया जा सकता। हास्य-व्यंग्य है तो सोचने के लिए विवश करनेवाले प्रसंग भी। विश्वास है कि अब एक सूत्र में गूँथकर हर मौसम में खिलनेवाले विभिन्न सुगंधों और रंगों के फूलों से बना अनुभूतियों का गुच्छा पाठकों को अवश्य आनंद देगा।
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348,95 kr. मकान # 706 ' आपकी-हमारी, सबको अपनी कहानी है। प्रत्येक उन माता-पिता की कहानी है, जिनकी संतान N.R.I. हैं। N.R.I. का अर्थ Non resident Indian -अर्थात्] वो बच्चे जो विदेश में रहते हैं एवं माता-पिता भारत में रहते हैं । परंतु यदि माता-पिता दिल्]ली में रहते हों एवं उनकी संतान चेन्नई या कोलकाता में रहती है उन्हें क्या कहेंगे ? चाहे संतान N.R.I . हो या माता-पिता N.R.I. हों"' संतान के माता-पिता के प्रति नैसर्गिक कर्तव्यों को कोई नकार नहीं सकता है। "मकान # 706 ' में मातृ-ऋण एवं पितृ-ऋण से उऋण होने के अनेक साधन सुझाए हैं । माता-पिता और संतति के संबंधों की अत्यंत मर्मस्पर्शी एवं भावुक कर देनेवाली पठनीय सामाजिक कृति है
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383,95 kr. स्वाधीनता संघर्ष के विश्ववंद्य, अतुलनीय, अपराजित योद्ठा महाराणा प्रताप के सफल संघर्ष की वास्तविक कथा इतिहास-प्रंथों में दर्ज होने के बावजूद अनेक काल्पनिक कथाओं के द्वारा उसे धूमिल करने का प्रयास ही किया गया है।. इस प्रामाणिक पठनीय उपन्यास में घास की रोटी खाने, हल्दीघाटी युद्ध में शक्तिसिंह द्वारा प्राणरक्षा, युद्ध में जय-पराजय विवाद, भामाशाह द्वारा स्वयमोपार्जित अपार धन प्रदान करने जैसे अनेक जनप्रवादों का सच पर्याप्त शोध के पश्चात्] सामने लाने का प्रयास किया गया है।. बचपन से युवावस्था तक पिता महाराणा उदयसिंह की घोर उपेक्षा के शिकार रहने के बावजूद प्रताप के किशोरावस्था में ही अपने शौर्य प्रदर्शन से लेकर महाराणा बनने में आए व्यवधान जैसे दर्जनों अज्ञात प्रकरण पुस्तक में होने के कारण पाठक को महाराणा प्रताप के अकल्पनीय संघर्ष की सच्चाई से अवगत होने का अवसर मिलेगा।. उनके द्वारा आविष्कृत 'छापाकार युद्ध के द्वारा आठ वर्षों तक प्रलयंकारी मुगल आक्रमणों के प्रतिकार में मिली सफलता के कारण विश्व भर में इस पद्धति का अनुसरण होता रहा । भारतवर्ष के गौरव महाराणा प्रताप के दुर्धष संघर्ष, अप्रतिम संकल्पशक्ति और अपरिमेय जिजीविषा का यह प्रेरक विवरण हमारे वीर और प्रतापी सम्राटों के पराक्रम, साहस और शौर्य का जयघोष करेगा।
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383,95 kr. सारदेंदु बंद्योपाध्याय के कालजयी डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शी की लोकप्रियता कई दशकों से बरकरार है। 1930 के दशक में 'किरदार' की रचना के साथ वह कलकत्ता के घर-घर में लोकप्रिय हुए और फिर 1990 के दशक में टी.वी. पर जाना-माना चेहरा बने। अपने दोस्त और हमजोली अजीत के साथ ब्योमकेश शायद भारत के सबसे चहेते साहित्यिक डिटेक्टिव में से एक हैं। इस संग्रह में तीन ऐसी पहेलियाँ हैं, जिन्हें उन्होंने सुलझाया। अनेक संदिग्धों वाले बोर्डिंग हाउस में हुए एक मर्डर से लेकर उस पहेली तक, जिसमें एक अलौकिक मोड़ भी है, और फिर ग्रामीण बंगाल में कालाबाजारी के गिरोह का भंडाफोड़ करने तक, इन कहानियों के जरिए सच की तलाश में यह लोकप्रिय डिटेक्टिव तमाम इलाकों में जाता है। इस दौरान उसकी प्रतिभा व चतुराई देखने को मिलती है। 'क्विल्स ऑफ द पॉरक्यूपाइन' में चतुर डिटेक्टिव कमाल के फॉर्म में है, जब वह बड़ी दक्षता से एक क्रूर अवसरवादी की साजिश का भंडाफोड़ करता है।
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328,95 kr. भारत रत्न बाबासाहब डॉ. बी.आर. आंबेडकर को भारतीयसंविधान के सिद्धांत निर्माता और दलित अधिकारों के मुर प्रवक्ता के रूप में जाना जाताहै। उन्होंने कम उम्र से ही भेदभाव का अनुभव किया, जिसका उन्होंने अपने बाद के लेखनमें स्पष्ट रूप से वर्णन किया। एक जगह वे लिखते हैं-''स्कूल में रहते हुए मैं जानताथा कि जब सामान्य वर्ग के बच्चे प्यासे होते हैं, तो वे पानी के नल के पास जा सकतेहैं, उसे खोल सकते हैं और अपनी प्यास बुझा सकते हैं, लेकिन मेरी स्थिति अलग थी। मैंनल को नहीं छू सकता था और जब तक नल को कोई सामान्य जन मेरे लिए नहीं खोल देता, तब तकमेरी प्यास बुझाना संभव न था।''1920 में उन्होंनेएक साप्ताहिक मराठी अखबार शुरू किया, जिसमें जातिगत भेदभाव की कड़ी आलोचना की गई। उन्होंने1937 और 1946 में अंग्रेजों द्वारा दिए गए चुनाव लड़ने के लिए दो राजनीतिक दलों कीस्थापना की, हालाँकि इन्हें संसाधन-संपन्न कांग्रेस पार्टी के खिलाफ बहुत कम सफलतामिली। 1947 में भारत स्वतंत्र हुआ, तो प्रधानमंत्री नेहरू ने उन्हें पहले कानून औरन्यायमंत्री बनने के लिए आमंत्रित किया। संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया था।डॉ. आंबेडकर ने इसकी सराहना की कि इसकी सीमाएँ हैं।बाबासाहब के अनंत संघर्ष कीमर्मांतक कहानी, जिसमें उनके बाल-संघर्ष को मुखरता से अभिव्यक्त किया गया है।
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358,95 kr. प्रस्तुत कहानी-संग्रह 'कुछ टूटने की आवाज' की अधिकतर कहानियों में कोमल भावों, जैसे जमीर, भरोसा, ह्रश्वयार, मनोबल, धैर्य, सरलता आदि के आहत होने या टूटने-बिखरने से मची अंदरूनी उथलपुथल और उससे उपजी भावनाओं में बहकर किए गए बाह्य कार्यकलापों का काल्पनिक चित्रण है।टूटने से आवाज होती है। फिर टूटने वाली वह चीज भले ही भौतिक अस्तित्व रखती हो, जैसे क्रॉकरी, शीशा, पत्थर अथवा फर्नीचर या जिसका भौतिक अस्तित्व न हो, जैसे भरोसा, जमीर, मनोबल या ह्रश्वयार। दोनों के टूटने पर मन दुखता है। दोनों तरह की चीजों के टूटने की आवाज हमारा ध्यान अपनी ओर खींचती है; कुछ करने के लिए कहती है।भौतिक वस्तुओं के टूटने के बाद हम उन्हें मरम्मत कराकर ठीक कर लें या यदि हमारे पास पैसा है तो उन्हें कूड़ेदान में फेंककर दूसरी खरीद लें। हमारे व्यक्तित्व की अभौतिक चीजों के टूटने पर भरपाई इतनी आसान नहीं होती। जमीर, भरोसा, ह्रश्वयार और मनोबल किसी भी कीमत पर बाजार में नहीं मिलते। उन्हें सिर्फ जोड़ा जा सकता है, और जोडऩे पर भी गाँठ पड़ जाती है। इसलिए इन्हें सँभालकर रखें।
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383,95 kr. यह पुस्तक प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचने और सामान्य अनुभवों, जैसे-स्वयं की खोज, इच्छाशक्ति, छोटी-छोटी विजय और सकारात्मक ढंग से सोचने की ताकत को साझा करने का एक प्रयास है। हमारा आगे का संघर्ष लंबा है, लेकिन हम एक साथ इस संघर्ष में दृढ़ रहेंगे। हमारी ताकत हमें पुनः यश के मार्ग पर ले जाएगी। ऐसा प्रतीत होता है कि हम सभी ने इस अभूतपूर्व समय में भविष्य गढ़ा है। एक ऐसा भविष्य, जहाँ विश्व के घाव भरेंगे; एक ऐसा भविष्य, जहाँ आनेवाली पीढि़याँ हमें एक स्वस्थ विश्व के अगुवाओं के रूप में देखेगी। चारों तरफ नजर रखना, समाचार पढ़ना और सफलता एवं भाईचारे की छोटी-छोटी कहानियों ने मुझे यह सोचने पर विवश कर दिया कि हम इनसान के रूप में कैसे अपनी किस्मत और भाग्य के मास्टर हैं। हम अपने दिमाग द्वारा तय सभी कार्य किस तरह करने में सक्षम हैं। विपरीत समय में हम अँधेरे में आशा की किरण देखते हैं; तूफान के बाद इंद्रधनुष का इंतजार करते हैं और इस सबसे गुजरने पर हम अपनी अद्भुत धरती माँ द्वारा उदारतापूर्वक प्रदान की गई चीजों की सराहना करने का समय निकालते हैं। वैश्विक महामारी कोविड-19 से उपजी असामान्य परिस्थितियों के बीच मानवता, संवेदना, सह-अस्तित्व, परोपकार, पारस्परिकता जैसे जीवन-मूल्यों के प्रेरक उदाहरणों से भरपूर यह पुस्तक निराशा और अवसाद को दूर करने की अद्भुत शक्ति प्रदान करती है।
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348,95 kr. जै सा कि लेखक खुद कहते हैं, यह जेल-डायरी नहीं है, न ही यह इमरजेंसी का वृत्तांत है। इसकी बजाय यह आपातकाल पर पार्श्व प्रकाश है। मल्कानी ने एक बंदी के रूप में जेल में जो कुछ भी देखा, सुना और महसूस किया, उन पर अपने अनुभवों को लिखा है। हिसार, रोहतक और तिहाड़-इन तीन जेलों में उन्होंने इक्कीस महीने बिताए, जहाँ उनकी मुलाकात अपराधियों से लेकर आला नेताओं समेत तरह-तरह के लोगों से हुई। यह उनके विषय में एक बेहद मानवीय दस्तावेज है, जो कभी मनोरंजक, कभी मायूस करनेवाला तो कभी-कभी पीड़ादायी हो जाता है। जेल में एकांत में बिताए गए लंबे समय ने लेखक को हिंदू-मुसलिम समस्या पर गहन विश्लेषण का अवसर दिया, जिसके विषय में उन्होंने नई और उम्मीद जगानेवाली बातें लिखी हैं। पूरी संवेदनशीलता के साथ लिखी गई इस पुस्तक में मर्मस्पर्शी छोटी-छोटी कहानियाँ हैं, जिनमें सियासी ज्ञान भी है, और जिनके कारण पढ़ने में यह पुस्तक बेहद रोचक हो जाती है। यह न केवल किसी एक व्यक्ति का दृष्टिकोण सामने रखती है, बल्कि सभी बंदियों के जीवन की झलक भी दिखाती है।
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393,95 kr. वर्तमान युग प्रतिस्पर्धा का है, जिसमें सफल होने के लिए स्नातक स्तर के प्रत्येक विद्यार्थी को कार्यालयीय हिंदी और कंप्यूटर का ज्ञान होना परमावश्यक है। इसी को ध्यान में रखते हुए हमने उत्तर प्रदेश सरकार हेतु तैयार किए गए पाठ्यक्रम में उक्त दोनों बिंदुओं पर पर्याप्त विचार करने के उपरांत स्नातक द्वितीय सेमेस्टर हिंदी के विद्यार्थियों एवं स्नातक स्तर पर लघु विषय (Minor Subject) के रूप में हिंदी विषय का चयन करनेवाले समस्त संकायों के विद्यार्थियों हेतु कार्यालयीय हिंदी और कंप्यूटर प्रश्न-पत्र तैयार किया है। तदनुरूप पाठ्य पुस्तक की आवश्यकता को दृष्टिगत रखते हुए यह पुस्तक प्रस्तुत की है, जिसमें कार्यालयीय हिंदी का स्वरूप, उद्देश्य एवं क्षेत्र, पारिभाषिक शब्दावली, कार्यालयीय हिंदी पत्राचार, प्रारूपण, टिप्पण, संक्षेपण, पल्]लवन एवं प्रतिवेदन, हिंदी भाषा और कंप्यूटर का विकास क्रम, हिंदी भाषा में कंप्यूटर प्रौद्योगिकी, हिंदी भाषा और ई- शिक्षण तथा हिंदी कंप्यूटर टंकण एवं शॉर्ट हैंड, जैसे वर्तमान समय की आवश्यकता के अनुरूप विषयों को सरल और सुबोध भाषा में समझाने का प्रयास किया गया है। आशा है, पूर्व पुस्तकों की भाँति इस पुस्तक का भी शिक्षकों, विद्यार्थियों एवं अभिभावकों के मध्य स्वागत होगा।
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358,95 kr. कोंकणी की लोकप्रिय कहानियाँ अब हिंदी क्षेत्र के माध्यम से राष्ट्रीय पटल पर पहुँच रही हैं तथा राष्ट्रीय प्रवाह में भी पहुँची हैं। केवल साहित्य से नहीं, संपूर्ण कोंकणी संस्कृति, कोंकणी लोगों का रहन-सहन, खाना-पीना, उनका लोक-साहित्य, उनका इतिहास आदि से भारत के लोग परिचित हो जाएँगे। इस कथा-संग्रह में हमने पंद्रह कोंकणी कहानियों का समावेश किया है। भारतीय भाषाओं के साथ शामिल होने का अधिकृत सम्मान कोंकणी को सन् 1975 में प्राप्त हुआ, जब कोंकणी को साहित्य अकादेमी से मान्यता प्राप्त हुई। कोंकणी कथा लिखनेवाले लगभग 50 से ज्यादा लेखक हैं, लेकिन इस कथा-संग्रह में सिर्फ पंद्रह कथाएँ हैं। वास्तव में, कोंकणी की प्रतिनिधि कहानियों को इस संग्रह में स्थान दिया गया है। विश्वास है कि कोंकणी की ये श्रेष्ठ कहानियाँ हिंदी पाठकों के बीच भी खूब लोकप्रिय होंगी।
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368,95 kr. पुराणों में दिग्विजयी सम्राटों के अनेक प्रमाण देखे जा सकते हैं। विभिन्न रूपों में आज भी उनके जीवित प्रमाण भारत सहित विश्वभर में बिखरे पड़े हैं। इनकी गौरव गाथाएँ जन-सामान्य की आस्था के केंद्र हैं, जो पग-पग पर उनका मार्गदर्शन भी करती हैं। इस पुस्तक में भगवान बुद्ध के बाद के उन विशिष्ट भारतीय सम्राटों की चर्चा की गई है, जिनकी गौरव-गाथाओं ने काल के कपाल पर अनेक गरिमामय अभिलेख अंकित किए हैं। उनकी दिग्विजयी सेनाओं ने भारत की सीमाओं के बाहर जाकर भी विजय के अनेक कीर्तिमान स्थापित किए हैं। इन विजयों में धम्म विजय महत्त्वपूर्ण है। सम्राट् अशोक और कनिष्क जैसे सम्राटों ने इसमें अग्रणी भूमिका निभाई। विक्रमादित्य, चंद्रगुप्त मौर्य,समुद्रगुप्त, चंद्रगुप्त द्वितीय, हर्षवर्धन, बप्पा रावल, ललितादित्य, मिहिर भोज, महाराणा प्रताप, महाराणा साँगा, परमार भोज, अनंगपाल, राजेंद्र चोल प्रथम, हेमचंद्र विक्रमादित्य व सम्राट् कृष्णदेव राय की अपनी-अपनी गौरव गाथाएँ हैं।इन्होंने जहाँ अपने भुजबल से संपूर्ण भारतवर्ष को एकता के सूत्र में बाँधने काप्रयास किया, वहीं इनके घोड़ों के टापों की धमक पेकिंग से लेकर गांधार तक अनुभव की गई। सम्राट् राजेंद्र चोल प्रथम के नौसैनिक बेड़े श्रीलंका से लेकर दक्षिण पूर्व एशियाके कई भागों तक पहुँचे और वहाँ भारतीय संस्कृति के ध्वजवाहक बने। भारत के प्रतापी सम्राटों के शौर्य, प्रराक्रम, प्रजावत्सलता, सामाजिक-सांस्कृतिक सरोकारों का दिग्दर्शन करवाकर गौरवबोध जाग्रत करनेवाली प्रेरक पुस्तक।
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358,95 kr. ऐश्वर्य से भरा जीवन त्याग कर वल्कलधारिणी बननेवाली ब्रह्मवादिनी लोपा को उनके संकल्प से कोई भी नहीं डिगा पाया। वे स्वयंवरा बनीं।. इस औपन्यासिक कृतिमें आर्यावर्त की सनातन संस्कृति का, वैदिक वाङ्मय के उस विराट् स्वरूप का विशेष आकर्षणहै, जिसके अभाव में राष्ट्रबोध की अवधारणा का कोई मोल नहीं!. भारत की नारीशक्तिसकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण मृत्यु के रव में अमृतत्व का संधान करती उत्कर्ष की नईऊँचाइयों को छूने के प्रयास में संलग्न है।. शताब्दियाँ व्यतीतहो जाएँगी, लोकधर्म का मूल सत्य अपरिवर्तित ही रहेगा। राम की राजनीति-आंतरिक निर्णयोंकी गोपनीयता, प्रजा के कल्याण हेतु राजकोष के अधिकतम अंश का प्रावधान, न्यूनतम निजीव्यय, सत्यवादी सभासदों, अमात्यों, अंगरक्षकों की पहचान, प्रजा पर कोई भी कर नहीं,कृषि और व्यवसाय के दैनंदिन उत्कर्ष का संकल्प, भौतिक संपदा के स्थान पर दैवी संपदाको सबसे अधिक मूल्यवान समझना.... लोपामुद्रा और अगस्त्यकी यह कथा हमारी संतति को असंशयी, दृढ़निश्चयी बना सके, यही इसका श्रेय और प्रेय है।
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358,95 kr. हमारी मातृभूमि भारतवर्ष का मेरुदंड धर्म केवल धर्म ही है। धर्म के आधार पर, उसी की नींव पर हमारी जाति के जीवन का प्रासाद खड़ा है। भारत के राष्ट्रीय आदर्श हैं-- त्याग और सेवा। आप उसकी इन धाराओं में तीव्रता उत्पन्न कीजिए और बाकी सब अपने आप ठीक हो जाएगा। संसार में सत्संग से पवित्र और कुछ भी नहीं है, क्योंकि सत्संग से ही शुभ संस्कार चित्त रूपी सरोवर की तली से ऊपरी सतह पर उठ आने के लिए उन्मुख होते हैं । मान लो, किसी में दोष है तो केवल गाली- गलौज से कुछ नहीं होगा; हमें उसकी जड़ में जाना होगा। पहले पता लगाओ कि दोष का कारण क्या है ? फिर उस कारण को दूर करो और वह दोष अपने आप ही चला जाएगा। हमारा प्रत्येक कार्य, हमारा प्रत्येक अंग-संचालन, हमारा हर विचार हमारे चित्त पर इसी प्रकार का एक संस्कार छोड़ जाता है और यद्यपि ये संस्कार ऊपरी दृष्टि से स्पष्ट न हों, तथापि इतने प्रबल होते हैं कि ये अवचेतन मन में अज्ञात रूप से कार्य करते रहते हैं । - इसी पुस्तक से स्वामी विवेकानंद एक आध्यात्मिक विभूति, मानवधर्मी और समाजधर्मी भी थे। वे जीवन को उन्नत, त्याणमय, सत्यनिष्ठ और मानव-मूल्यों से प्रदीप्त करने के प्रबल पक्षधर थे। उनके संपूर्ण व्यक्तित्व का पठन-चिंतन हर भारतवासी के लिए आत्म-विकास, सफलता, संतोष और सुख के द्वार खोलेगा
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468,95 kr. वीर सावरकर रचित '१८५७ का स्वातंत्र्य समर' विश्व की पहली इतिहास पुस्तक है, जिसे प्रकाशन के पूर्व ही प्रतिबंधित होने का गौरव प्राप्त हुआ। इस पुस्तक को ही यह गौरव प्राप्त है कि सन् १९०९ में इसके प्रथम गुप्त संस्करण के प्रकाशन से १९४७ में इसके प्रथम खुले प्रकाशन तक के अड़तीस वर्ष लंबे कालखंड में इसके कितने ही गुप्त संस्करण अनेक भाषाओं में छपकर देश-विदेश में वितरित होते रहे। इस पुस्तक को छिपाकर भारत में लाना एक साहसपूर्ण क्रांति-कर्म बन गया। यह देशभक्त क्रांतिकारियों की 'गीता' बन गई। इसकी अलभ्य प्रति को कहीं से खोज पाना सौभाग्य माना जाता था। इसकी एक-एक प्रति गुप्त रूप से एक हाथ से दूसरे हाथ होती हुई अनेक अंतःकरणों में क्रांति की ज्वाला सुलगा जाती थी। पुस्तक के लेखन से पूर्व सावरकर के मन में अनेक प्रश्न थे-सन् १८५७ का यथार्थ क्या है?क्या वह मात्र एक आकस्मिक सिपाही विद्रोह था? क्या उसके नेता अपने तुच्छ स्वार्थों की रक्षा के लिए अलग-अलग इस विद्रोह में कूद पड़े थे, या वे किसी बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक सुनियोजित प्रयास था? यदि हाँ, तो उस योजना में किस-किसका मस्तिष्क कार्य कर रहा था?योजना का स्वरूप क्या था?क्या सन् १८५७ एक बीता हुआ बंद अध्याय है या भविष्य के लिए प्रेरणादायी जीवंत यात्रा?भारत की भावी पीढि़यों के लिए १८५७ का संदेश क्या है? आदि-आदि। और उन्हीं ज्वलंत प्रश्नों की परिणति है प्रस्तुत ग्रंथ-'१८५७ का स्वातंत्र्य समर'! इसमें तत्कालीन संपूर्ण भारत की सामाजिक व राजनीतिक स्थिति के वर्णन के साथ ही हाहाकार मचा देनेवाले रण-तांडव का भी सिलसिलेवार, हृदय-द्रावक व सप्रमाण वर्णन है। प्रत्येक देशभक्त भारतीय हेतु पठनीय व संग्रहणीय, अलभ्य कृति!.
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348,95 kr. "जो कुछ मैं कर सका, वह जीवन भर मुसीबतें सहन करके विरोधियों से टक्कर लेने के बाद कर पाया हूँ। जिस कारवाँ को आप यहाँ देख रहे हैं, उसे मैं अनेक कठिनाइयों से यहाँ ला पाया हूँ। अनेक अवरोधों, जो इसके मार्ग में आ सकते हैं, के बावजूद इस कारवाँ को बढ़ते रहना है। अगर मेरे अनुयायी इसे आगे ले जाने में असमर्थ रहे तो उन्हें इसे यहीं पर छोड़ देना चाहिए, जहाँ पर यह अब है; पर किन्हीं भी परिस्थितियों में इसे पीछे नहीं हटने देना है। मेरी जनता के लिए मेरा यही संदेश है।"
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343,95 kr. EEC-13 प्रारंभिक सांख्यिकीय विधियाँ और सर्वेक्षण तकनीकें Topics Covered अध्याय-1 समंक तथा उनका प्रस्तुतिकरण अध्याय-2 एक विचर समंकों का संक्षेपण अध्याय-3 द्विचर आंकड़ों का संक्षेपण अध्याय-4 सूचकांक, कालश्रेणी तथा जन्म-मृत्यु सांख्यिकी अध्याय-5 प्रायिकता तथा प्रायिकता बंटन अध्याय-6 प्रतिचयन के सिद्धांत और सर्वेक्षण तकनीकें अध्याय-7 सांख्यिकीय अनुमिति प्रश्न पत्र (1) जून, 2009 (हल सहित) (2) दिसम्बर, 2009 (हल सहित) (3) जून, 2010 (हल सहित) (4) दिसम्बर, 2010 (हल सहित) (5) जून, 2011 (हल सहित) (6) दिसम्बर, 2011(हल सहित) (7) जून, 2012 (हल सहित) (8) दिसम्बर, 2012 (9) जून, 2013 (10) दिसम्बर, 2013 (11) जून, 2014 (12) दिसम्बर, 2014 (13) जून, 2015 (14) दिसम्बर, 2015 (15) जून, 2016 (16) दिसम्बर, 2016 (17) जून, 2017 (हल सहित) (18) दिसम्बर, 2017 (19) जून, 2018 (हल सहित) (20) दिसम्बर, 2018 (21) जून, 2019 (22) दिसम्बर, 2019 (23) जून, 2020 (24) दिसम्बर, 2020
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338,95 kr. बास्केटबॉल बास्केटबॉल एक टीम खेल है, जिसमें 5 सक्रिय खिलाड़ियों वाली दो टीमें होती हैं, जो एक-दूसरे के खिलाफ एक 10 फीट (3.048 मीटर) ऊँचे घेरे (गोल) में संगठित नियमों के तहत एक गेंद डालकर अंक अर्जित करने की कोशिश करती हैं। यह विश्]व के सबसे लोकप्रिय और व्यापक रूप से देखे जानेवाले खेलों में से एक है। गेंद को ऊपर से टोकरी के आर-पार फेंककर (शूटिंग) अंक बनाए जाते हैं; खेल के अंत में अधिक अंकोंवाली टीम जीत जाती है। गेंद को कोर्ट में उछालते हुए (ड्रिब्लिंग) या साथियों के बीच आदान-प्रदान करके आगे बढ़ाया जाता है। बाधित शारीरिक संपर्क (फाउल) को दंडित किया जाता है और गेंद को कैसे सँभाला जाए, इसके भी नियम हैं। सन् 1932 में अंतरराष्]ट्रीय बास्केटबॉल महासंघ का गठन, आठ संस्थापक देशों, यथा-अर्जेंटीना, चेकोस्लोवाकिया, ग्रीक, इटली, लातविया, पुर्तगाल, रोमानिया और स्विट्जरलैंड द्वारा किया गया था। इस समय, संगठन केवल शौकिया खिलाड़ियों का निरीक्षण करता है। पुरुषों के बास्केटबॉल को सर्वप्रथम 1936 में बर्लिन ओलंपिक खेलों में शामिल किया गया। इस प्रकार की ढेरों जानकारियों से युक्]त यह पुस्तक खेल-प्रेमियों को अवश्य पसंद आएगी।.
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348,95 kr. सगुण भक्]त]ि-धारा के कृष्]ण-भक्तों में मीराबाई का श्रेष्]ठ स्]थान है। वे श्रीकृष्]ण को ईश्]वर-तुल्य पूज्य ही नहीं, वरन् अपने पति-तुल्य मानती थीं। कहते हैं कि उन्होंने बाल्यावस्]था में ही श्रीकृष्]ण का वरण कर लिया था। माता-पिता ने यद्यपि उनका लौकिक विवाह भी किया, लेकिन उन्होंने पारलौकिक प्रेम को प्रश्रय दिया तथा पति का घर-बार त्यागकर जोगन बन गईं और गली-गली अपने इष्]ट, अपने आराध्य, अपने वर श्रीकृष्]ण को ढूँढ़ने लगीं। उन्होंने वृंदावन की गली-गली, घर-घर, बाग-बाग और पत्तों-पत्तों में गिरधर गोपाल को ढूँढ़ा, अंततः जब वे नहीं मिले तो द्वारिका चली गईं। मीराबाई ने अनेक लोकप्रिय पदों की रचना की। हालाँकि काव्य-रचना उनका उद]्देश्य नहीं था। लेकिन अपने आराध्य के प्रति निकले उनके शब्द ही भजन बन गए और लोगों की जुबान पर चढ़ गए। उनके पद राजस्]थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश एवं बंगाल में बहुत लोकप्रिय हुए और आज भी रेडियो एवं टेलीविजन पर जे सुने जा सकते हैं। प्रेम-भक्]त]ि में मग्न होकर गाए उनके पद-गीत यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं। प्रस्तुत पुस्तक में उनके भक्]त]ि-रस में रचे-बसे पदों को संकलित किया गया है। आशा है, सुधी पाठक इस पुस्तक के माध्यम से मीराबाई के भक्]त]ि-सागर में गोते लगाएँगे।
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368,95 kr. यह पुस्तक लेखक के गहन आदिवासी एवं लोक समाजों से निकले अनुभवों पर आधारित है। उनके सहज एवं समान तालमेल, तारतम्य, बंदोबस्त, दैनिक जीवन और भिन्]न बोलियों की सहज-सुलभ रफ्तार तथा प्रकृति से सहज साझापन अलग होकर भी हाल तक एक जैसे हुआ करते थे-दोनों प्रकृति को अविजित रखते। अपनी स्थिरता तथा सन्नाटा खो पिछले चंद दशकों में आदिवासी एवं लोक समाजों में वैसा साझापन अब समाप्त हो रहा हैगहन वनस्पति, मनुष्य, पशु, पुरखे, पहाड़, देवी, देवता, अंतरिक्ष, स्थूल एवं सूक्ष्म की समानांतर उपस्थिति, उनसे बने तारतम्य और फासले, दैनिक जीवन की एक अहस्तक्षेपित, अव्यस्त-सी लय व गति (या गतिहीनता)--ये समाज इन्हीं में रहा करते। अपने विस्तार, वीरान एवं रिश्ते लिये सबकी मिली-जुली बिरादरी होती। बस्तर के अबुझमाड़ जैसे प्राचीन एवं गहन इलाके में लोग कार्य न करते, न ही जानते, न जीविका न व्यवसाय, न रुझान रखते, फिर भी पिछले सौ वर्षों की स्मृति में भुखमरी सुनने में न आती। न अपराध, न हिंसा। गिनती पाँच तक। शब्दावली कोई तीन सौ शब्दों की। मौन की संस्कृति। संप्रेषण भरपूर। इससे अधिक कुछ नहीं चाहिए.यह पुस्तक आधुनिकता या सामाजिक विज्ञान के मुहावरे से निकल हाल तक के ऐसे समाजों और जीवन-दृष्टि को इंगित करने का प्रयास है।
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