Pracheen Itihas Mein Vigyan
- Indbinding:
- Hardback
- Sideantal:
- 314
- Udgivet:
- 1. oktober 2018
- Størrelse:
- 152x22x229 mm.
- Vægt:
- 630 g.
- 2-3 uger.
- 12. december 2024
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Beskrivelse af Pracheen Itihas Mein Vigyan
हमारे यहाँ विज्ञान की जो तरक्की बहुत ज़्यादा नहीं हो सकी, उसका प्रमुख कारण जातिभेद रहा। मेहनत-मशक्कत यानी शूद्र शिल्पकारों के योगदान को सुविधाभोगियों और धार्मिक ग्रन्थों ने छोटा काम समझ लिया; वेदान्त ने संसार को मिथ्या माया बताया, ऐसे में पृथ्वी को जानने-समझने का उत्साह कहाँ से आएगा। ध्यान से बड़ा है विज्ञान; जानने को ही विज्ञान कहते हैं। वैज्ञानिक कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि एक दृष्टि, एक विचार होता है।यूँ तो भारत में वैज्ञानिक प्रागैतिहासिक काल से पाए जाते हैं किन्तु उनका नाम-पता हमें ज्ञात नहीं है। विश्व-प्रसिद्ध सिन्धु-सभ्यता का निर्माण ऐसे ही अनजान वैज्ञानिकों ने किया था। भूख, रोग, सर्दी एवं गर्मी से हमारी सुरक्षा भी वैज्ञानिकों ने की। पशुपालन और खेती से नया युग आया। इससे आदिम समाज का $खात्मा और श्रेणी अर्थात् वर्गीय समाज का आरम्भ हुआ। व्यापार की तरक्की, रोज़मर्रा के कामों में रुपए-पैसे का चलन और शहरों का जन्म-इन ऐतिहासिक घटनाओं ने शिल्पकार-शूद्र-कृषक वर्ग के पैरों में पड़ी ज़ंजीरों को खोलने का उपाय किया। परम्परावादी बन्धन अपने आप ढीले हो गए। माना जाने लगा कि आज़ाद लोग अच्छी और स$ख्त मेहनत करते हैं।पुरानी सभ्यताओं की टूटी-फूटी निशानियाँ धरती की छाती पर आज भी शेष हैं। यह स्पष्ट करने के लिए कि विज्ञान ही इतिहास का वास्तविक निर्माता होता है, इस पुस्तक में कुछ नवीन शीर्षक वाले लेखों को रखा गया है। इनमें प्रमुख हैं-प्राचीन विज्ञान एवं वैज्ञानिक, महाभारत, रामायण, शूद्र, मन्दिर, सिक्के, कला में विज्ञान, दक्षिण भारतीय अभिलेख, ज्योतिष विद्या मिथक या यथार्थ, शिल्पकार आदि।अभी तक इतिहास की मुख्यधारा से जनसाधारण को अलग ही रखा गया है। उदाहरण के लिए किसान-मज़दूर, ईमारत बनाने वाले, बढ़ई, मछुआरा, हज्जाम, दाई, चरवाहा, कल-कार$खान
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