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Megh Jaisa Manushya

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शंख घोष की कविता का स्वर सांद्र है, उसमें गहरी करुणा है। और उसकी शब्द सम्पदा हमें दृश्यों/परिस्थितियों की एक बड़ी रेंज के बीच खड़ा कर देती है-जहाँ से दैनंदिन जीवन को समझने-बूझने के साथ, हम सृष्टि और प्रकृति के बहुतेरे मर्मों को भी चिह्नित कर पाते हैं। वह संकेतों में भी बहुत कुछ कहती है। बिम्ब तो वह कई तरह के रचती ही है। और उपमाओं का जहाँ-जहाँ प्रयोग है, वे अनूठी ही हैं। उनकी कविताओं में अर्थ-गांभीर्य है और इस गांभीर्य के स्रोत विनोद और प्रखर उक्तियों में भी छिपे हैं। गहन-गम्भीर चिन्तन में तो हैं ही। वह उन कवियों में से हैं जिनकी कविता अपनी एक विशिष्ट पहचान मानों आरम्भ से आँकती आयी है, पर, अपने विशिष्ट स्वर की रक्षा करते हुए, वह अपने को हर चरण में कुछ 'नया' भी करती आयी है, जिसमें सामाजिक-सांस्कृतिक और राजनीतिक परिस्थितियों के 'गूढ़ार्थ' भी पढ़े जा सकते हैं। उसमें एक ज़बरदस्त नैतिक और मानवीय आग्रह है। वह मनुष्य-प्रकृति के अनिवार्य सम्बन्ध की पक्षधर है। उसकी पर्यावरणीय चिन्ताएँ भी हैं, और वह मानवीय सम्बन्धों में एक निखार, परिष्कार के साथ, उनमें एक बराबरी की आकांक्षी है। उनकी कविता में जल जनित बिम्ब बार-बार लौटते हैं। जल-धारा, और जलाशय-सिर्फ, पोखर-ताल तक सीमित नहीं हैं, उनमें जल के आशय निहित हैं, और जल की निर्मलता, मन की निर्मलता का पर्याय बन जाती है।उसमें पशु-पक्षियों की, विभिन्न ग्रह-नक्षत्रों की उपस्थिति है, और वर्षा के प्रसंग से तो वह वर्षा-सौन्दर्य से आप्लावित भी है। उनकी कविता की जड़ें बंगभूमि में, उसकी भाषा और संस्कृति में बहुत गहरी हैं, पर उसकी 'स्थानिकता' हरदम, सर्वदेशीय, या सार्वजनीन होने की क्षमता रखती है!उसमें आधुनिकता/समकालीनता की स्वीकृति है तो एक सघन विडम्बना-बोध भी है। कुल मिलाकर उसमें खासा वैविध्य है-अनुभव क्षेत्र

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  • Sprog:
  • Hindi
  • ISBN:
  • 9789387462502
  • Indbinding:
  • Hardback
  • Sideantal:
  • 98
  • Udgivet:
  • 1. januar 2018
  • Størrelse:
  • 140x10x216 mm.
  • Vægt:
  • 272 g.
  • 2-3 uger.
  • 12. december 2024
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Beskrivelse af Megh Jaisa Manushya

शंख घोष की कविता का स्वर सांद्र है, उसमें गहरी करुणा है। और उसकी शब्द सम्पदा हमें दृश्यों/परिस्थितियों की एक बड़ी रेंज के बीच खड़ा कर देती है-जहाँ से दैनंदिन जीवन को समझने-बूझने के साथ, हम सृष्टि और प्रकृति के बहुतेरे मर्मों को भी चिह्नित कर पाते हैं। वह संकेतों में भी बहुत कुछ कहती है। बिम्ब तो वह कई तरह के रचती ही है। और उपमाओं का जहाँ-जहाँ प्रयोग है, वे अनूठी ही हैं। उनकी कविताओं में अर्थ-गांभीर्य है और इस गांभीर्य के स्रोत विनोद और प्रखर उक्तियों में भी छिपे हैं। गहन-गम्भीर चिन्तन में तो हैं ही। वह उन कवियों में से हैं जिनकी कविता अपनी एक विशिष्ट पहचान मानों आरम्भ से आँकती आयी है, पर, अपने विशिष्ट स्वर की रक्षा करते हुए, वह अपने को हर चरण में कुछ 'नया' भी करती आयी है, जिसमें सामाजिक-सांस्कृतिक और राजनीतिक परिस्थितियों के 'गूढ़ार्थ' भी पढ़े जा सकते हैं। उसमें एक ज़बरदस्त नैतिक और मानवीय आग्रह है। वह मनुष्य-प्रकृति के अनिवार्य सम्बन्ध की पक्षधर है। उसकी पर्यावरणीय चिन्ताएँ भी हैं, और वह मानवीय सम्बन्धों में एक निखार, परिष्कार के साथ, उनमें एक बराबरी की आकांक्षी है। उनकी कविता में जल जनित बिम्ब बार-बार लौटते हैं। जल-धारा, और जलाशय-सिर्फ, पोखर-ताल तक सीमित नहीं हैं, उनमें जल के आशय निहित हैं, और जल की निर्मलता, मन की निर्मलता का पर्याय बन जाती है।उसमें पशु-पक्षियों की, विभिन्न ग्रह-नक्षत्रों की उपस्थिति है, और वर्षा के प्रसंग से तो वह वर्षा-सौन्दर्य से आप्लावित भी है। उनकी कविता की जड़ें बंगभूमि में, उसकी भाषा और संस्कृति में बहुत गहरी हैं, पर उसकी 'स्थानिकता' हरदम, सर्वदेशीय, या सार्वजनीन होने की क्षमता रखती है!उसमें आधुनिकता/समकालीनता की स्वीकृति है तो एक सघन विडम्बना-बोध भी है। कुल मिलाकर उसमें खासा वैविध्य है-अनुभव क्षेत्र

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