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    प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई, 1880 को वाराणसी के निकट लम्ही ग्राम में हुआ था। उनके पिता अजायब राय पोस्ट ऑफिस में क्लर्क थे। वे अजायब राय व आनन्दी देवी की चौथी संतान थे। पहली दो लड़कियाँ बचपन में ही चल बसी थीं। तीसरी लड़की के बाद वे चौथे स्थान पर थे। माता पिता ने उनका नाम धनपत राय रखा। सात साल की उम्र से उन्होंने एक मदरसे से अपनी पढ़ाई-लिखाई की शुरुआत की जहाँ उन्होंने एक मौलवी से उर्दू और फारसी सीखी। जब वे केवल आठ साल के थे तभी लम्बी बीमारी के बाद आनन्दी देवी का स्वर्गवास हो गया। उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली परंतु प्रेमचंद को नई माँ से कम ही प्यार मिला। धनपत को अकेलापन सताने लगा। वाराणसी के एक वकील के बेटे को 5 रु महीना पर ट्यूशन पढ़ाकर जिंदगी की गाड़ी आगे बढ़ी। कुछ समय बाद 18 रु महीना की स्कूल टीचर की नौकरी मिल गई। सन् 1900 में सरकारी टीचर की नौकरी मिली और रहने को एक अच्छा मकान भी मिल गया। धनपत राय ने सबसे पहले उर्दू में 'नवाब राय' के नाम से लिखना शुरू किया। बाद में उन्होंने हिंदी में प्रेमचंद के नाम से लिखा। प्रेमचंद ने 300 से अधिक कहानियाँ लिखीं। उनकी कहानियों का अनुवाद विश्व की अनेक भाषाओं में हुआ है। प्रेमचंद ने मुंबई में रहकर फिल्म 'मज़दूर' की पटकथा भी लिखी। प्रेमचंद काफी समय से पेट के अलसर से बीमार थे, जिसके कारण उनका स्वास्थ्य दिन-पर-दिन गिरता जा रहा था। इसी के चलते 8 अक्टूबर, 1936 को कलम के इस सिपाही ने सब से विदा ले ली।

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    प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई, 1880 को वाराणसी के निकट लम्ही ग्राम में हुआ था। उनके पिता अजायब राय पोस्ट ऑफिस में क्लर्क थे। वे अजायब राय व आनन्दी देवी की चौथी संतान थे। पहली दो लड़कियाँ बचपन में ही चल बसी थीं। तीसरी लड़की के बाद वे चौथे स्थान पर थे। माता पिता ने उनका नाम धनपत राय रखा। सात साल की उम्र से उन्होंने एक मदरसे से अपनी पढ़ाई-लिखाई की शुरुआत की जहाँ उन्होंने एक मौलवी से उर्दू और फारसी सीखी। जब वे केवल आठ साल के थे तभी लम्बी बीमारी के बाद आनन्दी देवी का स्वर्गवास हो गया। उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली परंतु प्रेमचंद को नई माँ से कम ही प्यार मिला। धनपत को अकेलापन सताने लगा। वाराणसी के एक वकील के बेटे को 5 रु महीना पर ट्यूशन पढ़ाकर जिंदगी की गाड़ी आगे बढ़ी। कुछ समय बाद 18 रु महीना की स्कूल टीचर की नौकरी मिल गई। सन् 1900 में सरकारी टीचर की नौकरी मिली और रहने को एक अच्छा मकान भी मिल गया। धनपत राय ने सबसे पहले उर्दू में 'नवाब राय' के नाम से लिखना शुरू किया। बाद में उन्होंने हिंदी में प्रेमचंद के नाम से लिखा। प्रेमचंद ने 300 से अधिक कहानियाँ लिखीं। उनकी कहानियों का अनुवाद विश्व की अनेक भाषाओं में हुआ है। प्रेमचंद ने मुंबई में रहकर फिल्म 'मज़दूर' की पटकथा भी लिखी। प्रेमचंद काफी समय से पेट के अलसर से बीमार थे, जिसके कारण उनका स्वास्थ्य दिन-पर-दिन गिरता जा रहा था। इसी के चलते 8 अक्टूबर, 1936 को कलम के इस सिपाही ने सब से विदा ले ली।

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    प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई, 1880 को वाराणसी के निकट लम्ही ग्राम में हुआ था। उनके पिता अजायब राय पोस्ट ऑफिस में क्लर्क थे। वे अजायब राय व आनन्दी देवी की चौथी संतान थे। पहली दो लड़कियाँ बचपन में ही चल बसी थीं। तीसरी लड़की के बाद वे चौथे स्थान पर थे। माता पिता ने उनका नाम धनपत राय रखा। सात साल की उम्र से उन्होंने एक मदरसे से अपनी पढ़ाई-लिखाई की शुरुआत की जहाँ उन्होंने एक मौलवी से उर्दू और फारसी सीखी। जब वे केवल आठ साल के थे तभी लम्बी बीमारी के बाद आनन्दी देवी का स्वर्गवास हो गया। उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली परंतु प्रेमचंद को नई माँ से कम ही प्यार मिला। धनपत को अकेलापन सताने लगा। वाराणसी के एक वकील के बेटे को 5 रु महीना पर ट्यूशन पढ़ाकर जिंदगी की गाड़ी आगे बढ़ी। कुछ समय बाद 18 रु महीना की स्कूल टीचर की नौकरी मिल गई। सन् 1900 में सरकारी टीचर की नौकरी मिली और रहने को एक अच्छा मकान भी मिल गया। धनपत राय ने सबसे पहले उर्दू में 'नवाब राय' के नाम से लिखना शुरू किया। बाद में उन्होंने हिंदी में प्रेमचंद के नाम से लिखा। प्रेमचंद ने 300 से अधिक कहानियाँ लिखीं। उनकी कहानियों का अनुवाद विश्व की अनेक भाषाओं में हुआ है। प्रेमचंद ने मुंबई में रहकर फिल्म 'मज़दूर' की पटकथा भी लिखी। प्रेमचंद काफी समय से पेट के अलसर से बीमार थे, जिसके कारण उनका स्वास्थ्य दिन-पर-दिन गिरता जा रहा था। इसी के चलते 8 अक्टूबर, 1936 को कलम के इस सिपाही ने सब से विदा ले ली।

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    The book includes several short stories by Indian author Munshi Premchand. He sees what nobody else sees, and beautifully presents his life experiences and life incidences in the form of interesting stories. Ordinary things that people usually neglect in their routine life are brilliantly woven into short stories by the author. His brutally honest thoughts about life and people around him still make his stories engaging and worth-reading even after more than 70-80 years. He has experienced destitution and pennilessness in his life, which makes his narrations all the closer to reality. The readers can find connection with the collection of short stories that are given in the book. Every story has a message for the readers and the entire mankind; hence, the book is a good read for today's tech-savvy generation. Lovers of Hindi literature are going to enjoy their time while reading short and influential stories in the book.

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    Premchand's novella Nirmala, first published in 1928, is one of the most poignant novels in Hindi on the theme of the young adolescent yoked to an elderly husband. Clearly reformist in its agenda, this novel succeeds in exploring sensitive and even dangerous terrain. Alok Rai's English translation includes an Afterword which takes note of the novel's special context, placing it in perspective and making a contemporary reading of the work possible.

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    ""¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿""¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ 14 ¿¿¿¿¿¿¿ ¿ 300 ¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ '¿¿¿¿¿¿¿¿' ¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿-¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿, ¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿ ¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿ ¿¿ ¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿, ¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿, ¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿, ¿¿¿¿, ¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿, ¿¿¿-¿¿¿¿¿¿¿¿, ¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿

  • af Premchand
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  • af Rabindranath Tagore, Premchand, Khushwant Singh, mfl.
    208,95 kr.

  • - A Translation of the Classic Hindi Novel Godaan
    af Premchand
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    A vivid and moving account of life in a north Indian village in the late colonial period.

  • af Premchand
    291,95 kr.

    In Karmabhumi Premchand explores the complex world of human relationships while firmly grounding his characters in the social and political realities of his times. Through his protagonists and their yearnings, love, laughter, tears, trials, and tribulations, the author subtly brings to life the India of the early decades of the twentieth century, while at the same time delivering a powerful social and political message.